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मूर्खश्रेष्ठ मैं नहीं तो कौन
Fun Story मूर्खश्रेष्ठ मैं नहीं तो कौन:- होली का उत्साह था और विजयनगर के राजदरबारियों की उमंग का ठिकाना नहीं था क्योंकि राजा कृष्णदेव राय होली के दिन मूर्खश्रेष्ठ का पुरस्कार दिया करते थे। हर बार यही होता था कि होली पर मूर्खश्रेष्ठ का यह पुरस्कार तेनालीराम अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बल पर झटककर ले जाया करता था। लेकिन इस बार कुछ दरबारियों ने मिलकर यह योजना बनाई कि चाहे कुछ भी हो जाए इस बार मूर्खश्रेष्ठ का पुरस्कार तेनालीराम को नहीं लेने दिया जाएगा। योजना बनी कि तेनालीराम को इतनी अधिक भांग पिला दी जाए कि होली वाले दिन वह अपनी सुधबुध खोकर घर में ही सोया रहे। राजदरबार में ना पहुंच पाए। (Fun Stories | Stories)
ऐसा ही किया गया। तरंग में तेनालीराम घर पर ही पड़ा रहा। दोपहर बाद जब तेनालीराम की तरंग कम हुई तो वह हड़बड़ाकर उठा और उसी दशा में ही राज दरबार की तरफ दौड़ पड़ा। रंग से बुरी तरह रंगे हुए और बदहवास से तेनालीराम को जब राजा कृष्णदेव राय ने दरबार में प्रवेश करते देखा तो वे उसे डपटकर बोले, "ये क्या मूर्खता है तेनालीराम! एक तो तुम दरबार में विलंब से आ रहे हो और ऊपर से तुम्हारा हुलिया ऐसा है जैसे कोई बंदर दरबार में प्रवेश कर गया हो।"
"हमें तुमसे ऐसी मूर्खता की आशा नहीं थी।" राजा के मुख से ऐसी बात सुनकर तेनालीराम की आंखें चमकने लगीं। वह बोला...
"हमें तुमसे ऐसी मूर्खता की आशा नहीं थी।" राजा के मुख से ऐसी बात सुनकर तेनालीराम की आंखें चमकने लगीं। वह बोला, "क्षमा करें महाराज, लगता है आज आप मुझसे जल रहे हैं तभी ऐसा कह रहे हैं। दरबारियों से पूछ लीजिए, व मेरे बारे में ऐसा कदापि ना कहेंगे।" (Fun Stories | Stories)
"क्यों नहीं कहेंगे।" तेनालीराम की बात खत्म होते ही राज पुरोहित उठकर बोला, "हम सभी महाराज की बात का समर्थन करते हैं। तुमने इस तरह दरबार में आकर सचमुच मूर्खता का काम किया है।"
“सिर्फ मूर्खता नहीं, महामूर्खता कहिए, राजपुरोहित जी!" महामंत्री ने तैनालीराम का उपहास उड़ाते हुए कहा।
"क्या मैं वास्तव में ही महामूर्ख हूं महाराज?" तेनालीराम ने रुआंसे स्वर में राजा से पूछा। (Fun Stories | Stories)
"हां, आज तुम सचमुच महामूर्ख लग रहे हो।" राजा कृष्णदेव राय ने दृढ़ता और क्रोध से भरकर कहा। अन्य दरबारियों ने भी राजा की बात का अनुमोदन किया। अब तेनालीराम के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। वह राजा से मुखातिब होकर बोला, "महाराज, जब आपने और सारी सभा ने यह निर्णय कर ही लिया है तो फिर देर किस बात की है। इस होलिकोत्सव का मूर्खश्रेष्ठ पुरस्कार मुझे प्रदान करके कृतार्थ करें।" अब सभी को समझ में आया कि तेनालीराम क्यों सभी से स्वयं को महामूर्ख कहलवाने में लगा हुआ था। लेकिन अब क्या हो सकता था। राजा के साथ-साथ सभी दरबारियों ने निर्णय सुना दिया था।
इसलिए होली के अवसर की सबसे बड़ी उपाधि कीमती उपहार सहित एक बार फिर तेनालीराम को मिली। और उसके विरोधियों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। (Fun Stories | Stories)
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